रिहायशी निर्माण परियोजना में पर्यावरण नियमों के उल्लंघन में अतिरिक्त निर्माण के लिए पुणे के गोयल गंगा डेवलपर्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को देश की सर्वोच्च अदालत ने १०० करोड या परियोजना के लागत का १०% ,इसमें जो भी अधिक हो जुर्माना लगाया गया हैं ! अदालत ने कंपनी पर राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण द्वारा लगाया गया ५ करोड़ रुपये का जुर्माना भी बरकरार रखा हैं ।
अदालत ने पुणे नगर निगम पर राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण द्वारा लगाया गया जुर्माना और निगम के अधिकारियों पर कार्रवाई के दिए गये आदेश को भी बरकरार रखा है । ज्ञात हो की राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने पुणे नगर निगम पर ५ लाख रुपये का जुर्माना लगाया था!
हालांकि अदालत ने इस परियोजना के कुछ इमारतों को ध्वस्त करने से इंकार कर दिया,लेकिन प्रस्तावित दो इमारतों में जिसमें ४५७ फ्लैट बनने वाले थे उनके बनाने पर रोक लगा दि हैं ! इसके चलते इस परियोजना के धारकों में ‘कहीं खुशी कहीं गम‘ वाली भावना हैं !
अदालत के इस निर्णय ने पर्यावरण के नियमों का उल्लंघन करनेवाले बिल्डर और उन निर्माणो मे फ्लैट लेने वाले खरिदारों को एक बड़ा झटका लगा हैं जो पर्यावरण प्रमाण पत्र देखे बिना या आग्रह धरे बिना फ्लेट खरीद लेते हैं!
सिंहगढ़ रोड पर वडगांव बुद्रुक में गोयल गंगा डेवलपर्स ने गंगा भाग्योदय, अमृतगंगा और गंगा भाग्योदय टावरों के निर्माण का प्रस्ताव दिया था ! इस परियोजना में ७९,१०० वर्ग मीटर के कुल भूखंड क्षेत्र के साथ कुल ५७ हजार ६५८.४२ वर्ग मीटर का निर्माण क्षेत्र हैं! इस रिहायशी परियोजना योजना में पर्यावरण विभाग ने अनुमति के बिना लगभग १ लाख वर्ग मीटर क्षेत्र का निर्माण किया गया था!
ज्ञात हो कि गोयल गंगा को रिहायशी परियोजना के लिए ४/४/२००८ को ५७६५८.४२ वर्ग मीटर निर्माण करने हेतु पर्यावरण अनुमति मिली थी । यह अनुमति ५ साल यानी २०१४ तक थी लेकिन २०१४ के बाद , उन्हों ने १ लाख वर्ग मीटर से अधिक का निर्माण किया था !
इस उल्लंघन के विरोध में गोयल गंगा कंपनी के खिलाफ राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण में याचिका दायर की गई थी!
निर्माण परियोजनाओं में पर्यावरण के नियमों का उल्लंघन कर अतिरिक्त निर्माण कार्य करने के चलते गोयल गंगा डेवलपर्स इंडिया प्रा. लि. कंपनी को राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने १०५ करोड़ रुपयों का जुर्माना किया गया था ।
गोयल गंगा ग्रुप के अवैध कार्यों की जानकारी राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण से छिपाकर बिल्डर को मदद करने के चलते पुणे महानगरपालिका को पांच लाख रुपयों का जुर्माना सुनाया गया था! तथा इस प्रकरण के लिए जिम्मेदार संबंधित अधिकारियों पर कार्रवाई का आदेश पुणे मनपा के आयुक्त को राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने दिया था । इसके अलावा पर्यावरण विभाग को गुमराह करनेवाले विभाग के सचिव पर कार्रवाई करने का आदेश महाराष्ट्र राज्य के मुख्य सचिव को दिया गया था ।
आखिर यह मामला सर्वोच्च अदालत में चला गया , जहां राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण द्वारा किया गया जुर्माना कायम किया गया! अदालत ने यह भी कहा कि २००८ की स्वीकार्य परमिट से अधिक का निर्माण पर्यावरण मंजूरी का उल्लंघन हैं ।
लेकिन अदालत ने इस परियोजना कि इमारतो को ध्वस्त करने कि याचिकाकर्ता कि मांग को इसलिए खारिज कर दिया हैं कि कई लोग इस परियोजना में रहने आए हैं !
सर्वोच्च अदालत ने इस परियोजना में दो इमारतों में प्रस्तावित ४५७ फ्लैटों के निर्माण पर रोक लगा दी हैं! इन दो इमारतों का निर्माण , पर्यावरण विभाग की वैधता अवधि समाप्त होने के बाद और नई अनुमति लिए बिना किया गया था ! इसलिए अदालत ने फ्लैट धारकों को कोई राहत प्रदान करने से इनकार कर दिया हालांकि,अदालत ने गोयल गंगा को इन दो इमारतों में निवेश करनेवाले फ्लेट धारकों को उनके निवेश का भुगतान ९% ब्याज के साथ करने का आदेश दिया है!
एफ.एस. आई और बिल्ट अप एरिया पर चल रहे विवाद पर अदालत ने यह कहकर पर्दा डाल दिया की निर्माण क्षेत्र का निर्माण, जो आकाश में खुला नहीं हैं, जिसमें बेसमैंट और सेवा क्षेत्र शामिल हैं‘ वह बिल्ट एरिया हैं !
एफ.एस. आई और बिल्ट अप एरिया के संबंध में पर्यावरण विभाग को गुमराह करने वाले अधिकारियों की भूमिका पर पूछताछ करने के आदेश अदालत ने महाराष्ट्र के मुख्य सचिव को दिए हैं! साथ ही पर्यावरण विभाग के तत्कालीन प्रधान सचिव की भूमिका के बारे में भी पूछताछ कर तीन महीने में रिपोर्ट जमा करने के आदेश भी दिए गए हैं!
१४/९/२००६ में, केंद्र सरकार के पर्यावरण विभाग ने एक अध्यादेशद्वारा दो लाख वर्ग फुट से बड़े रिहायशी निर्माण के लिए पर्यावरण विभाग कि अनुमति जरूरी की थी ! इस संबंध में दिए गए आदेश में, बिल्ट अप एरिया ' का उल्लेख 'वह क्षेत्र जो आकाश के लिए खुला नहीं हैं' ऐसा किया गया था ।
इसके बाद ४/४/२०११ को २००६ के अध्यादेश में किया बिल्ट अप एरिया 'का मतलब एक कार्यालय ज्ञापन द्वारा स्पष्ट किया गया था! इस ज्ञापन द्वारा भी ‘बिल्ट अप एरिया ' का उल्लेख 'वह क्षेत्र जो आकाश के लिए खुला नहीं हैं' ऐसा स्पष्ट किया गया था !
लेकिन बिल्डरों के संगठन क्रेडाई द्वारा २०१७ मे यह मांग कि गई थी कि ४/४/२०११ के ज्ञापन द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण को पूर्वपक्षी प्रभाव से यानी २००६ से लागू ना किया जाए ! ४/४/२०११ के ज्ञापन द्वारा स्पष्ट किया गया ‘बिल्ट अप एरिया ' का मतलब २०११ के बाद वाली परियोजनाओं के लिए लागू किया जाए !
हमारे देश में बिल्डरों की मांग का मतलब सरकारी दफ्तरोंमे लगभग आदेश माना जाता है।विशेष रूप से ज्ञात हो की जब क्रेडाई ने यह ज्ञापन दिया था उस वक्त गोयल गंगा के संचालक अतुल गोयल, क्रेडाई के संयुक्त सचिव थे!
इसके चलते, मांग के केवल दो महीने बाद, केंद्रीय पर्यावरण विभाग के अतिरिक्त निदेशक डॉ आशीष शर्मा ने सक्षम प्राधिकारी की अनुमति के साथ आवश्यक कार्यालय ज्ञापन प्रसृत किया !
सर्वोच्च अदालत ने कार्यालय ज्ञापनद्वारा कानून के प्रावधानों को कमजोर करने कि अधिकारियों की करतूत के बारे में नाराजगी जताइ ।
अदालत ने यह भी कहा हैं की पुणे नगर निगम के अधिकारियों ने अपने अधिकारिता और हद से बाहर जाकर गोयल गंगा की परियोजना की मदत की ! इतना ही नही २००६ और २०११ के अध्यादेश में ‘ बिल्ट अप एरिया’ का मतलब स्पष्ट था ! लेकिन अधिकारीयों ने गोयल गंगा की परियोजना कि सहूलियत के हिसाब से उसका अर्थ लगाया!
२ अप्रैल, २००८ को दिए गए पर्यावरण लाइसेंस के उल्लंघन में परियोजना के निर्माण के लिए राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने गोयल गंगा को दोषी पाया था ! अदालत ने ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा दिए गए आदेश कि पुष्टि करते हुए उसे बरकरार रखा हैं !
मूल याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में और सुप्रीम कोर्ट के सामने, पुणे नगर निगम व पर्यावरण विभाग के अधिकारीयों के खिलाफ राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरणमे गंभीर आरोप लगाए थे !
हालांकि, सर्वोच्च अदालत ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि सर्वोच्च अदालत में इनमें से किसी भी अधिकारी को याचिकाकर्ता ने व्यक्तिगत रूप से प्रतिवादी नहीं किया ! और गैर-प्रतिवादी का पक्ष सुने बिना उन पर टिप्पणी करने से अदालत ने ठिक नही समझा । इसी प्रकार, इस याचिका को जनहित याचिका के रूप में संबोधित करने से भी अदालत ने इनकार कर दिया !
छह महीने के अंदर जुर्माना न भरने कि परिस्थिति में गोयल गंगा प्रा.ली और उसके सभी निदेशकों की संपत्ति जब्त करने का आदेश अदालत ने दिया !
साथ ही छह महीने के अंदर जुर्माना न भरने कि परिस्थिति में गोयल गंगा प्रा.ली और उसके सभी निदेशकों की परियोजनाओं को दी गई अनुमतियों को रद्द करने का आदेश अदालत ने दिया हैं ! और अदालत की अनुमति के बिना किसी भी अनुमति को दोहराने से भी मना कर दिया है!.
जुर्माना राशि का उपयोग कैसे करें, यह अदालत २२ अक्टूबर, २०१८ को तय करेगी !
सर्वोच्च अदालत के इस फैसले से पर्यावरणिक नियमों का महत्व अधिचिह्नित किया गया हैं !
तीन - चार साल पहले, मैं ने पुणे की लगभग १५० परियोजनाएं बारे में लिखा था जिन्होंने उचित पर्यावरण मंजूरी के बिना अवैध रूप से निर्माण शुरू किया था !इस पोस्ट के अंत में उसकी लिंक दी गई हैं !
फिर भी कई उपभोक्ताओं ने पर्यावरण प्रमाण पत्र पर विचार किए बिना फ्लैट खरीद लिया ! लेकिन अदालत के इस फैसले के लिए उनको बड़ा झटका लगा हैं !
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